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ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
शब्दों के अर्थ
ॐ – ओं (ब्रह्म, जो सब साकार और निराकार सत्य को दर्शाता है।)
त्र्यम्बकं – त्रिनेत्रों वाला (त्रिपुरान्तक, जो संसार की त्रिकालीन अवस्था का नाश करते हैं।)
यजामहे – हम पूजना करते हैं (यज्ञ करते हैं।)
सुगन्धिं – वास्तविक सुगंध (सुखद सुगंध या प्रेमी संगति।)
पुष्टिवर्धनम् – वृद्धि या बढ़ावा (विकास का अर्थ करता है, जो शक्तियों और धन की वृद्धि करता है।)
उर्वारुकमिव – जैसे कि ककड़ी (जो फलों को अपने बंधन से जमाता है और फिर उन्हें उच्च स्थान पर उठा लेता है।)
बन्धनान् – बंधन (संसार के सारे बंधनों से।)
मृत्योर्मुक्षीय – मृत्यु से मुक्ति प्राप्त हो।
मा – मुझे
अमृतात् – अमृत से (अमरता की प्राप्ति से।)
इस मंत्र का अर्थ है कि हम वह परमात्मा की पूजा करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं (जो संसार की तीन अवस्थाओं का नाश करते हैं)। वह सुगंधित और पोषक हैं। हमें मृत्यु के बंधन से मुक्ति प्रदान करें, जैसे कि ककड़ी अपने वाइन से मुक्त होती है और हमें अमरता की प्राप्ति कराती है।
भगवान भोलेनाथ शिव जी का यह प्रसिद्ध महा मृत्युंजय मंत्र सभी प्रकार के भय से मुक्त करने वाला है |
oṃ tryambakaṃ yajāmahe sugandhiṃ puṣṭivardhanam।
urvārukamiva bandhanān mṛtyor mukṣīya mā’mṛtāt॥
Word Meaning
ॐ – Om (The representation of Brahman, showing both the manifest and unmanifest truth.)
त्र्यम्बकं – Three-eyed (Referring to Tripurantaka, who destroys the cosmic ocean of worldly existence.)
यजामहे – We worship (We perform yajna or worship.)
सुगन्धिं – Fragrant (Referring to the real fragrance or auspicious association.)
पुष्टिवर्धनम् – Nourisher (Signifying growth or enhancement, which increases powers and wealth.)
उर्वारुकमिव – Like a cucumber (Which binds fruits with its solid stalk and then raises them to a high place.)
बन्धनान् – From bondage (From all the bonds of the world.)
मृत्योर्मुक्षीय – Liberate from death (Attain liberation from death.)
मा – Me
अमृतात् – From immortality (From the attainment of immortality.)
- Om, we worship the Three-eyed One (who destroys the three realms of existence), who is fragrant and nourishing.
- May He liberate us from the bonds of death, like a cucumber (that releases itself from its vine), and grant us immortality.
from Rig Veda 7.59.12