श्री हनुमान बाहुक (Shri Hanuman Bahuk)

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हनुमान जी, श्री राम जी के अनन्य भक्त हैं | हनुमान बाहुक उनकी गुणगान से भरा हुआ हैं | तुलसीदास जी को जब बिमारियों ने घेर लिया, कोई कहता हैं उनके हाथ में असहनीय दर्द हो रहा था , कोई कहता हैं उनको जान लेवा बीमारी हो गई थी | उस मुश्किल की घडी में तुलसीदास जी को उनके आराध्य सियावर राम चंद्र जी के प्रिये भक्त हनुमना जी की याद आई |

44 अनुच्छेदों में तुलसीदास जी ने हनुमान बाहुक की रचना की और  ऐसा करते ही उनकी सारी बीमारी दूर हो गई |  इस कारण हनुमान भक्त कठिन बीमारी से रक्षा के लिए हनुमान बाहुक का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करते हैं | यह एक चमत्कारी उपाय हैं |

अंजना नंदन राम जी के भक्ति के अति विशिष्ट प्रचारक भी हैं | जो कोई भी सीता राम जी की भक्ति करता हैं, हनुमना जी उसका विशेष ध्यान रखते हैं | जहाँ जहाँ भी राम कथा होती हैं, रामायण या रामचरितमानस का पाठ होता हैं, श्री हरी कीर्तन होता हैं, हनुमान जी वहां सबसे पहले आते हैं और सबसे अंतिम तक रुकते हैं | 

हनुमान जी को राम भक्ति कैसे, कहाँ और किसके आशीर्वाद से प्राप्त हुआ , इसका कहीं पे कुछ खास उल्लेख नहीं हैं | आपको अगर पता हो तो कृपया कमेंट में बताएं | अशोक वाटिका में माता सीता जी ने उन्हें सदा राम जी के दास रहने को और  राम जी का प्रिये होने का आशीर्वाद दिया था , हालाँकि  हनुमान जी राम भक्त उससे से भी पहले से थे |

जिंदगी में अगर आप हर मुश्किल को पार करना चाहते हो तो हनुमान जी की भक्ति करो | हनुमान जी की भक्ति करने से राम भक्ति आसनी से प्राप्त हो जाती  है | ” तुम्हरो भजन राम को पावै , जनम जनम के दुःख बिसरावै ” |

हनुमान चालीसा , हनुमान बजरंग बाण और हनुमान बाहुक , यह तीनो हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए अति प्रसिद्ध हैं |

हनुमना बाहुक आपके  सभी कष्टों को दूर करे और श्री राम की शुद्ध भक्ति प्रदान करे |

सियावर राम चंद्र की …   जय 

पवन पुत्र हनुमान जी की .. जय 

  • हिंदी / संस्कृत
  • English

॥ छप्पय ॥
सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट॥१॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन।
उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥२॥

॥ झूलना ॥
पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो।
बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो।
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो॥३॥

घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।
बल कैंधो बीर रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो॥४॥

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूतें घाटि नभ तल भो।
नाई-नाई-माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जो हैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो॥५॥

गो-पद पयोधि करि, होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक पर पुर गल बल भो।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो॥
संकट समाज असमंजस भो राम राज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा की बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो॥६॥

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो।
जातुधान दावन परावन को दुर्ग भयो, महा मीन बास तिमि तोमनि को थल भो॥
कुम्भकरन रावन पयोद नाद ईधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥७॥

दूत राम राय को सपूत पूत पौनको तू, अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन लखन प्रिय प्राण सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो॥८॥

दवन दुवन दल भुवन बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को।
पाप ताप तिमिर तुहिन निघटन पटु, सेवक सरोरुह सुखद भानु भोर को॥
लोक परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास। नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को॥९॥

महाबल सीम महा भीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को।
कुलिस कठोर तनु जोर परै रोर रन, करुना कलित मन धारमिक धीर को॥
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरन हार तुलसी की पीर को।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को॥१०॥

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि हर, मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु पोषिबे को हिम भानु भो॥
खल दुःख दोषिबे को, जन परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक दुदान भो।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो॥११॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को॥१२॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की।
बालक ज्यों पालि हैं कृपालु मुनि सिद्धता को, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की॥१३॥

करुनानिधान बलबुद्धि के निधान हौ, महिमा निधान गुनज्ञान के निधान हौ।
बाम देव रुप भूप राम के सनेही, नाम, लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक बेद बिधि के बिदूष हनुमान हौ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥१४॥

मन को अगम तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं।
देवबंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं।
बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं॥१५॥

॥ सवैया ॥
जान सिरोमनि हो हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहां तुलसी को न चारो।
दोष सुनाये तैं आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तो हिय हारो॥१६॥

तेरे थपै उथपै न महेस, थपै थिर को कपि जे उर घाले।
तेरे निबाजे गरीब निबाज बिराजत बैरिन के उर साले॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले।
बूढ भये बलि मेरिहिं बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले॥१७॥

सिंधु तरे बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवासे।
तैं रनि केहरि केहरि के बिदले अरि कुंजर छैल छवासे॥
तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से।
बानरबाज ! बढ़े खल खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवासे॥१८॥

अच्छ विमर्दन कानन भानि दसानन आनन भा न निहारो।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन से कुञ्जर केहरि वारो॥
राम प्रताप हुतासन, कच्छ, विपच्छ, समीर समीर दुलारो।
पाप ते साप ते ताप तिहूँ तें सदा तुलसी कह सो रखवारो॥१९॥

॥ घनाक्षरी ॥
जानत जहान हनुमान को निवाज्यो जन, मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिये।
सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भान्ति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥२०॥

बालक बिलोकि, बलि बारें तें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो विचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को निहारि सो निबारिये।
केसरी किसोर रनरोर बरजोर बीर, बाँह पीर राहु मातु ज्यौं पछारि मारिये॥२१॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो संबारिये।
राम के गुलामनि को काम तरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तो सों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यों पकरि के बदन बिदारिये॥२२॥

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे, जीव जामवंत को भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै विचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात घात ही मरोरि मारिये॥२३॥

लोक परलोकहुँ तिलोक न विलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखिअत भारिये।
बात तरुमूल बाँहूसूल कपिकच्छु बेलि, उपजी सकेलि कपि केलि ही उखारिये॥२४॥

करम कराल कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बक भगिनी काहू तें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहू बल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाई बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सब को गुनी के पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपि कान्ह तुलसी की, बाँह पीर महाबीर तेरे मारे मरैगी॥२५॥

भाल की कि काल की कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की॥
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की॥२६॥

सिंहिका सँहारि बल सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बार बार, जातुधान धारि धूरि धानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मंदोदरी कठोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महतारी है।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है॥२७॥

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र रवि राहु की।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोक पाल सब, तेरो नाम लेत रहैं आरति न काहु की॥
साम दाम भेद विधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की॥२८॥

टूकनि को घर घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नत पाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भान्ति समरथ आजु, कपिराज सांची कहौं को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि कोसो है॥२९॥

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधीकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है॥३०॥

दूत राम राय को, सपूत पूत वाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के धाय को॥
एते बडे साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को॥३१॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाग, राम दूत की रजाई माथे मानि लेत हैं॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥३२॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर घर के।
तेरे बल राम राज किये सब सुर काज, सकल समाज साज साजे रघुबर के॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरिहर के।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीस नाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के॥३३॥

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अव डेरिये॥
अँबु तू हौं अँबु चूर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये॥३४॥

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनाई है॥
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूंकि फौंजै ते उड़ाई है।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है॥३५॥

॥ सवैया ॥
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥३६॥

॥ घनाक्षरी ॥
काल की करालता करम कठिनाई कीधौ, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे॥३७॥

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुंह पीर, जर जर सकल पीर मई है।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है॥
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारे हीतें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है॥३८॥

बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि, मुँह पीर केतुजा कुरोग जातुधान है।
राम नाम जप जाग कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है॥
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दौऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है।
तुलसी सँभारि ताडका सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाई बानवान है॥३९॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक हौं।
परयो लोक रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं॥
खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥४०॥

असन बसन हीन बिषम बिषाद लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को॥४१॥

जीओ जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुर सरि को।
तुलसी के दोहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँऊ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को॥
मो को झूँटो साँचो लोग राम कौ कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को॥४२॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै॥
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि की जै तुलसी को जानि जन फुर कै।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै॥४३॥

कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये॥
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहें साँची मन गुनिये।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहिं, हौं हूँ रहों मौनही वयो सो जानि लुनिये॥४४॥

॥ chhappay ॥
sindhu taran, siy-soch haran, rabi baal baran tanu॥
bhuj bisaal, moorati karaal kaahu ko kaal janu॥
gahan-dahan-nirdahan lank nihsank, bank-bhuv॥
jaatudhaan-balavaan man-mad-davan pavanasuv॥
kah tulaseedaas sevat sahaj sevak hit santat nikat॥
gun ganat, namat, sumirat japat saman sakal-sankat-vikat॥1॥

svarn-sel-sankas koti-ravi taroon tej ghan॥
ur visaal bhuj dand chand nakh-vajratan॥
pingh nayan, bhrkutee karaal rasana dasanaanan॥
kapis kes karkas langoor, khal-dal-bal-bhaanan॥
kah tulaseedaas bas jaasu ur maarutasut moorati vikat॥
santap paap tehi purush pahi svapnahun nahin aavat nikat॥2॥

॥ jhoolana ॥
panchamukh-chhahmukh ​​bhrgu mukhy bhat asur sur, sarv sari samar samarath suro॥
banakuro beer birudait birudaavalee, bedabandi baadat pajapuro॥
jaasu gunagaath raghunaath kah jaasubal, bipul jal bharit jag jaladhi jhooro॥
duvan dal daman ko kaun tulasee hai, pavan ko poot raajapoot ruro॥3॥

॥ghanaaksharee॥
bhaanusan ne padha hanumaan gae bhaanuman, seekhee sisu kelee kiyo pher pharaso॥
pachhile pagani gam gagan magan man, kram ko na brahma kapi baalak bihaar so॥
kautuk vidhi lokapaal harihar, lochani chakaachaundhi chittani khabar so॥
bal kandho beer ras dheeraj kai, saahas kai, tulasee sirir dhare sabani saar so॥4॥

bhaarat mein paarath ke rath kethu kapiraaj, gaajyo suni kururaaj dal hal bal bho॥
kahyo dron bheeshm sameer sut mahaabeer, beer-ras-baaree-nidhi jaako bal jal bho॥
baanar subhaay baal keli bhoomi bhaanu laagee, phalaang phalaang hoten ghaatee nabh tal bho॥
naee-naee-maath joree-jori haath jodha jo, hanumaan dekho jagajeevan ko phal bho॥5॥

go-pad payodhi kari, holika jyon lai lanka, nihsankoch par pur gal bal bho॥
dron so pahaar liyo pra hee ukhaari kar, kanduk jyon kapi khel bel kaiso phal bho॥
sankat samaaj asamanjas bho raam raaj, kaaj jug pooganee ko karatal pal bho॥
dereval samath tulasee ko nai ja kee baanh, lok paal paalan ko phir thir thal bho॥6॥

kamath kee puri jaake godanee kee gaadan maano, nap ke bhajan bhaaree jal nidhi jal bho॥
jaatudhan daavaan paraavan ko durg bhayo, maha meen baas timi tomani ko thal bho॥
kumbhakarn raavan payod naad eedhan ko, tulasee prataap jaako prabal anal bho॥
bheeshm kahat mere upadesh hanumaan, saarikho trikaal na trilok mahaabal bho॥7॥

doot raam raay ko sapoot poot paunako too, anjani ko nandan prataap bhoo bhaanuri so॥
seey-soch-samaan, durit dosh daman, saran aaye avan laakhan priy praan so॥
dasamukh dusah daridr dareebe ko bhayo, prakat tilok ok tulasee nidhaan so॥
gyaan gunavaan balavaan seva saavadhaan, saaheb sujaan ur anu hanumaan so॥8॥

davan duvan dal bhuvan bidit bal, bed jas gaavat bibudh bandee chaaro ko॥
paap taap timir tuhin nighatan paatu, sevak saroruh sukhad bhaanu sooryoday ko॥
lok paralok ten bishok svapn na sok, tulasee ke hain bharoso ek or ko॥
raam ko dulaaro daas baamadev ko nivaas॥ naam kali kaamataru kesaree kishor ko॥9॥

mahaabal seem maha bheem mahaabaan it, mahaabeer bidit barayo raghubeer ko॥
kulis kathor tanu jor parai ror ran, karuna kalit man dhaarmik dheer ko॥
durjan ko kaalaso karaal paal sajjan ko, sumire haran haar tulasee ke peer ko॥
seey-sukh-daayak dulaaro raghunaayak ko, sevak sahaayak hai deliar sameer ko॥10॥

rachibe ko bidhi jaise, paalibe ko hari har, mich maaribe ko, jaibe ko sudhaapaan bho॥
dharibe ko dharani, tarani tam daalibe ko, sokhibe krshnu poshibe ko him bhaanu bho॥
khal dukh doshibe ko, jan paritoshibe ko, maangibo malinata ko modak dudaan bho॥
arat kee aaratee nivaaribe ko tihun pur, tulasee ko sabe hathilo hanumaan bho॥11॥

sevak syokai jaani jaanakis manai kaani, saanukul sulpani navai naath naanak ko॥
devee devav dayaavane hvai joran haath, baapure baraak kaha aur raaja raank ko॥
jagat sovat baithe baagat binod mod, taake jo anarth so samarth ek aank ko॥
sab din ruro parai pooro jahaan tahaan taahi, jaake hai bharosa hyahanumaan haank ko॥12॥

saanug sagauree saanukool sulpani taahi, lokapaal sakal laksh raam jaanakee॥
lok paralok ko bishok so tilok taahi, tulasee tami kaha kaahoo beer ankee॥
kesaree kishor bandeechhor ke nevaaje sab, keerati bimal kapi karunaanidhaan kee॥
baalak jyon paali hain krpaalu muni siddhata ko, jaake hiye hulasati yukh hanumaan kee॥13॥

karunaanidhaan balabuddhi ke nidhaan ho, mahima nidhaan gunagyaan ke nidhaan ho॥
bam dev roop bhoop raam ke sanehee, naam, let det arth dharm kaam nirbaan ho॥
aapaka prabhaav sitaara ke subhaav seel, lok bed bidhi ke bidoosh hanumaan ho॥
man kee bachan kee karam kee tihoon prakaar, tulasee tihaaro tum sab sujaan ho॥14॥

man ko agam tan mohit kapis, kaaj mahaaraaj ke samaaj saaj saaje hain॥
dev banage chaaro raanor kesaree kishor, jug jug jag tere pakshee biraaje hain॥
beer barajor ghaatee jor tulasee kee or, suni sakuchane saadhit khal gan gaaje॥
bigaree saanvar anjanee kumaar keeje mohin, jaise hot aae hanumaan ke nivaaje॥15॥

॥ saavaiya ॥
jan siromani ho hanumaan sada jan ke man baas tihaaro॥
dharo bigaaro main kaako kaha kehi kaaran khijaat haun to tihaaro॥
baaba sevak rishtedaar to hato kiyo so taan tulasee ko na chaaro॥
doshaye sun tain ehun ko laabh havan man to hay haaro॥16॥

tera thaapai uthapai na mahes, thaapai tera ko kapi je ur ghale॥
tere nibaaje gareeb nibaaj biraajat bairin ke ur saale॥
sankat soch sabai tulasee naam phataee makaree ke se jale॥
boodh bhaye bali merahin baar, ki hari pare byau nat paale॥17॥

sindhu tere bade beer dale khal, jare hain lank se bank mavaase॥
tain raanee kehari kehari ke bidale ari kunjar chhail chhaavase॥
toso samath sujaabe se sahai tulasee duhkh dosh aushadhi se॥
bainarabaaz ! bheege khal khechar, leejat kyon na lapeti lavaase॥18॥

achchh vimardan kaanan bhaani dasaanan amrt bha na nihaaro॥
balidaanaad akampan kumbhakarn se kunjar kehari vaaro॥
raam prataap hutaasan, kachchh, vipachchh, sameer sameer dulaaro॥
paap te saamp te taap tihoon ten sada tulasee kah so rakhavaaro॥19॥

॥ ghanaaksharee ॥
jaanat jahaan hanumaan ko nivaajyo jan, man laakee bali bol na bisaariye॥
seva jog tulasee kahahun kaha dosh paree, sabe subhaav kapi saahibee sambhaariye॥
aparaadhee jaani keejai sasati sahas bhaanti, modak marai jo taahi maahur na maarie॥
deyaradeyar sameer ke dulaare raghubeer juber ke, baanh peer mahaabeer begee hee nivaarie॥20॥

baali biloki, bali ke baare mein ten apano kiyo, deenabandhu daya kinheen nirupaadhi nyaariye॥
raavaro bharoso tulasee ke, raavaroee bal, as raavariyai daas raavaro vichaaraye॥
bado bikaraal kaalee kaako na bihaal kiyo, manohar pagu bali ko nihaari so nibaariye॥
kesaree kishor raanor barajor beer, baanh peer raahu maatu jyon pahiri maariye॥21॥

uthape thapanathir thaape uthapanahaar, kesaree kumaar bal aapano sambaariye॥
raam ke daasani ko kaam taru raamadoot, mose deen dube ko takiya tihaariye॥
saaheb samarth to son tulasee ke nishaan par, so aparaadh binu beer, bache maariye॥
pokharee bisaal baahu, bali, bairichar peer, makaree jyon pakaree ke badan bidaariye॥22॥

raam ko saneh, raam saahasik lakshan siya, raam kee bhagati, soch sankat nivaariye॥
mud marakat rog barinidhi heri haare, jeev jaamavant ko bharosa tero bhaaraye॥
japiye krpaal tulasee suprem pabbayaten, suthal subel bhaaloo baith kai vichaariye॥
mahaabeer baankure baraakee baanh peer kyon na, lankinee jyon takarae ghaat hee maro maarie॥23॥

lok paralokahun tilok na vilokyat, tose samarath chash chaarihoon nihaaraye॥
karm, kaal, lokapaal, ag jag jeevajal, naath haath sab nij mahima bichaariye॥
khas daas raavaro, nivaas tero taasu ur, tulasee so, dev duhkh dekhiat bhaariye॥
tarumool baahusool kapikachchhu belee, baat upajee sakeeli kapi keli hee ukhaariye॥24॥

karam karaal kans bhoomipaal kee maanyata, bakee bak bhaginee kaahoo ten kaha daraagee॥
badee bikaraal baal ghaatinee na jaat kahee, baanhoo bal baalak chhabeele chhotee chharaigee॥
aaee hai med besh aap hee bichaaree dekh, paap jaega sab ko gunee ke paale paraagee॥
pootana pishaachinee jyon kapi kaanh tulasee kee, baanh peer mahaabeer teree maregee॥25॥

bhaal kee kaal kee, tridosh kee, bedan bheeshm paap taap chhal kee॥
karman koot kee jantr mantr boot kee, parahi jaahi paapinee maleen man manh kee॥
pahihi sajaay, nat kahat bajaay tohi, baabaree na hohi bani jaani kapi naanh kee॥
aan hanumaan kee duhaee balavaan kee, sapath mahaabeer kee jo rahai peer baanh kee॥26॥

sinhika sanhaaree bal surasa sudhaari chhal, lankinee pahari maari batika ujaaree hai॥
lank parajaari makaree bidaaree baar-baar, jaatudhan dhaaree dhoori dhanee kaari daari hai॥
toree jamakaataree mandodaree kathoree aanee, raavan kee raanee meghanaad mahataaree hai॥
bheer baanh peer kee nat raakhi mahaabeer, kaun ke sakoch tulasee ke soch bhaaree hai॥27॥

tero baali keli beer suni sahamat dheer, bhulat sarir sudhi sakr ravi raahu kee॥
teri baanh basat bisok lok pal sab, tero naam let rahain aaratee na kaahu kee॥
saam daam bhed vidhi bedahu labed siddhi, haath kapinaath hee ke choree chor saahoo kee॥
alas anakh parihaas kai sidhavan hai, ete din rahee peer tulasee ke bahu kee॥28॥

tukani ko ghar ghar dolat kangaal bolee, baal jyon krpaal nat paal paali poso hai॥
keenhee hai saanbhar saar anjanee kumaar beer, aapano bisaari hain na merehoo bharosa hai॥
etano parekho sab bhaanti samarath aaju, kapiraaj saanchee kahaun ko tilok toso hai॥
sasati sahat daas keeje pekhi parihaas, chiree ko maran khel baalakani koso hai॥29॥

too hee paap ten tripaat ten ki paap ten, baakee hai baanh bedan kahee na sahee jaati hai॥
aushadh anek jantr mantr totakaadi ke, baadee bhaye devata manaaye adhikati hai॥
karataar, bharataar, harataar, karm kaal, ko hai jagajaal jo na maanat itaati hai॥
chero tero tulasee too mero kahyo raam doot, satye beer mohi peer ten pirati hai॥30॥

doot raam raay ko, sapoot poot vaay ko, samatv haath paay ko, sahaayak vichaaradhaara ko॥
baankee biradaavalee bidit bed gaiyat, raavan so bhaat bhayo muthika ke dhaay ko॥
ete bade saaheb samarth ko nivaajo aaj, seedat susevak bachan man kaay ko॥
thoree baanh peer kee badee galaanee tulasee ko, kaun paap kop, lop prakat prabhaay ko॥31॥

devee dev danuj manuj muni siddh naag, chhote bade jeev jete chetan achetan hain॥
pootana pishaachinee jaatudhan baag, raam doot kee rajaee manohar mani let॥
ghor jantr mantr koot kapat kurog jog, hanumaan an suni chadhat niket॥
krodh keeje karm ko prabodh keeje tulasee ko, sodh keeje tinako jo dosh duhkh det॥32॥

tere bal banar jitaaye ran raavan son, tere ghale jaatudhan bhaye ghar ghar ke॥
tere bal raam raaj sab sur kaaj, sakal samaaj saaj saaje raghubar ke॥
tero gunagaan suni girabhaan pulakat, sajal bilochan biranchi harihar ke॥
tulasee ke smaarak par haath phero kees naath, dekhiye na daas dukhee toso kanigar ke॥33॥

paalo tere tukadon ko parehoon asaphal mukiye na, kaur kaudee duko haun apanee or heriye॥
bhoranaath bhore hee sarosh hot thore dosh, poshi toshi thaapi aapano na av deriye॥
ambu too hoon ambu choor, ambu too hoon dimbh so na, suniye bilamb avalamb mere teriye॥
baalak bikal jaani paahi prem pahichaani, tulasee kee baanh par laamee loom pheriye॥34॥

baakee liyo rogani, kujogani, kulogani jyaun, basar jaladaghan ghata dukhi dhaee hai॥
barat baaree peer javaase jas, pher binu dosh dhoom mool malinaee hai॥
karunaanidhaan hanumaan maha balavaan, heri hansee yukifee faunjai te udai॥
khaaye huto tulasee kurog raadha rakasani, kesaree kishor raakhe beer bairee hai॥35॥

॥ saavaiya ॥
raam gulaam tu hi hanumaan gosaeen susaeen sada anukoolo॥
palyo haun baalajyon aakhar doon pitu maatu son mangal mod samoolo॥
baanh kee bedan baanh pagaar kolat aarat aanand bhoolo॥
shree raghubeer nivaariye peer rahaun darabaar paro latee loolo॥36॥

॥ ghanaaksharee ॥
kaal kee karaalata karam majaboot keedhau, paap ke prabhaav kee subhaay baay baavare॥
bedan kubhaanti so sahee na jaati rati din, soee baanh gahee jo gahee sameer daabare॥
laayo taru tulasee tihaaro so nihaari baaree, seenchiye malin bho taiyo hai tihun tavare॥
bhootanee kee apanee paraaye kee krpa nidhaan, jaaniyat sabhee kee reeti raam raavare॥37॥

paany peer pet peer baanh peer munh peer, jar jar sakal peer maee hai॥
dev bhoot pitar karm khal kaal grah, mohi par dairi damanak see daee hai॥
haun to binu mol ke bikaano bali ke baare mein, ot raam naam kee lalati lee hai॥
kumbhaj ke kinkar bikal booth gokhurani, haay raam raay aisee haal kahaun bhaee hai॥38॥

baahuk subaahu neech leechar maareech mili, mukh peer ketuja kurog jaatudhaan hai॥
raam naam jap jag kiyo chaaho sanuraag, kaal kaise doot bhoot kaha mera man hai॥
sumire sahaayata raam lakhan aakhar dooo, samooh saake jagat jahaan hai॥
tulasee saambhari taadaka sanhaaree bhaaree bhat, badhe baragad se banaavan hai॥39॥

baalapane sudhe man raam sanmukh bhayo, raam naam let maangi khaat tuk tak haun॥
parayo lok reeti mein punit preetee raam ray, moh bas baitho toree tarakee taarak haun॥
khote khote aacharan aachaar apanaayo, anjanee kumaar sodhyo raamapaani paak haun॥
tulasee gusaeen bhayo bhonde din bhool gayo, taako phal paavat nidaan paripaak haun॥40॥

asan basan heen bisham bishaad leen, dekhi din dubaro karai na hay hay ko॥
tulasee naath so naath raghunaath kiyo, diyo phal seel sindhu ye subhaay ko॥
neech yahi beech pati piya bharu haeego, bihe prabhu bhajan bachan man kaay ko॥
ta ten tanu pesheeyat ghor barator mis, phooti phuti nikasat lon raam ray ko॥41॥

jio jag jaanakee jeevan ko kahai jan, mareebe ko baaraansee bairee sur sari ko॥
tulasee ke dohoon haath modak hain aise thaanoo, jaake jaay muye soch karihen na lari ko॥
mo ko jhanto saancho log raam kahat sab, mere man man hai na har ko na hari ko॥
peer dusah sareer ten bihaal hot, sooo raghubeer binu saka door kari ko॥42॥

seetaapati saaheb sahaayata hanumaan nit, hit upadesh ko mahes maano guru kai॥
maanas bachan kaay saran tihaare paany, tumhaaree haalat sur mein na jaane sur kai॥
bidhi bhoot janit digree kaahu khal kee, samaadhi kee jay tulasee ko jaani jan phar kai॥
kapinaath raghunaath bholaanaath bhootanaath, rog sindhu kyon na dariyat gaay khur kai॥43॥

kahon hanumaan son sujaan raam raay son, krpaanidhaan sansaro son saavadhaan sunie॥
harsh vishad raag rosh gun may dosh, birachi biranchee dekhi sabayat duniya॥
maaya jeev kaal ke karm subhaay ke, karaiya raam bed kahe saanchee man guniye॥
tum ten kaha na hoy ​​ha ha so bujhaaye mohin, hoon hoon rahon maunahee vayo so jaani luniye॥44॥

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