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रुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ 1 ॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालुं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥ 2 ॥
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभासी शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा
लसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगम् ॥ 3 ॥
चलत्कुंडलं शुभ्रनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालुम् ।
मृगाधीशचर्मांबरं मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ 4 ॥
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखंडं भजे भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयीशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ 5 ॥
कलातीतकल्याणकल्पांतकारी
सदासज्जनानंददाता पुरारी ।
चिदानंदसंदोहमोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ 6 ॥
न यावदुमानाथपादारविंदं
भजंतीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शांति संतापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ 7 ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा देव तुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं
प्रभो पाहि शापान्नमामीश शंभो ॥ 8 ॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतुष्टये ।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शंभुः प्रसीदति ॥ 9 ॥
॥ इति श्रीरामचरितमानसे उत्तरकांडे श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥