आदि वाराही माता का साधना तंत्र-साधना के अंतर्गत आता है | श्री विद्या साधना में माता वाराही के मूल मन्त्रों, कवच, अष्टोत्तर नामवाली इत्यादि आतें हैं |
श्री आदिवाराही स्तोत्रम् की साधना करने वाले के
-सभी पाप नष्ट हो जातें हैं |
-सदा भक्ति पूर्वक जप करने से सभी पातक, कष्ट , दुखों से मुक्ति मिल जाती है |
-उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है |
-उसको लम्बी आयु की प्राप्ति होती है |
-उसके सभी रोग , बीमारियां दूर हो जाती हैं एवम शरीर निरोगी हो जाता है |
माँ वाराही उग्र देवियों में आतीं हैं | उनकी साधना प्रायः उच्च साधक ही करतें हैं | उग्र रूप होने के कारण उनकी प्रसन्नता से बड़े से बड़ा काम का अड़चन , रोग, रुकावट, भय सभी दूर हो जातें हैं। परन्तु उनके मंत्र जप , साधन में नियमों एवं उच्चारणों का विशेष ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है |
साधारण भौतिक इच्छाओं एवम परेशानियों के लिए उग्र रूप की पूजा की जरूरत नहीं होती है | देवी-देवताओं के सौम्य रूप से ही हो जाता है | जब कोई बहुत ही विशेष मुश्किल, अपने या अपने प्रिये जनों के प्राण संकट में हों, बहुत बड़ा व्यापारिक नुकशान की आशंका हो तो महाविद्याओं , वाराही माता , जैसी उग्र रूप का आह्वान एवम साधना किया जा सकता है |
ध्यान रहे, सिर्फ किसी योग्य गुरु के परामर्श एवं निरिक्षण में ही इन साधना को करना चाहिए |
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नमोऽस्तु देवी वाराही जयैकारस्वरूपिणि ।
जपित्वा भूमिरूपेण नमो भगवती प्रिये ॥ 1 ॥
जय क्रोडास्तु वाराही देवी त्वं च नमाम्यहम् ।
जय वाराहि विश्वेशी मुख्यवाराहि ते नमः ॥ 2 ॥
मुख्यवाराहि वन्दे त्वां अन्धे अन्धिनि ते नमः ।
सर्वदुष्टप्रदुष्टानां वाक्स्तम्भनकरी नमः ॥ 3 ॥
नमः स्तम्भिनि स्तम्भे त्वां जृम्भे जृम्भिणि ते नमः ।
रुन्धे रुन्धिनि वन्दे त्वां नमो देवी तु मोहिनी ॥ 4 ॥
स्वभक्तानां हि सर्वेषां सर्वकामप्रदे नमः ।
बाह्वोः स्तम्भकरी वन्दे त्वां जिह्वास्तम्भकारिणी ॥ 5 ॥
स्तम्भनं कुरु शत्रूणां कुरु मे शत्रुनाशनम् ।
शीघ्रं वश्यं च कुरुते योऽग्नौ वाचात्मिके नमः ॥ 6 ॥
ठचतुष्टयरूपे त्वां शरणं सर्वदा भजे ।
होमात्मके फड्रूपेण जय आद्यानने शिवे ॥ 7 ॥
देहि मे सकलान् कामान् वाराही जगदीश्वरी ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं नमो नमः ॥ 8 ॥
इदमाद्यानना स्तोत्रं सर्वपापविनाशनम् ।
पठेद्यः सर्वदा भक्त्या पातकैर्मुच्यते तथा ॥ 9 ॥
लभन्ते शत्रवो नाशं दुःखरोगापमृत्यवः ।
महदायुष्यमाप्नोति अलक्ष्मीर्नाशमाप्नुयात् ॥ 10 ॥
इति श्री आदिवाराही स्तोत्रम् ।