शनि चालीसा (Shani Chalisa)

Download “Shani Chalisa PDF” shani-chalisa.pdf – Downloaded 3233 times – 162.02 KB

शनि देव की चालीसा का अपना एक विशेष महत्व है | जिन्हें साढ़े साती की परेशानी झेलना पड़ रहा है , उनके लिए तो यह बहुत ही लाभकारी सिद्ध हो सकता है | 

अक्सर लोग शनि देव को नेगेटिव रूप में देखते है , जबकि यह  यैसा नहीं है | शनि देव कर्म फल दाता है | आपके जैसे कर्म होंगे , आपको फल भी वैसे ही  मिलेगा | सिर्फ भगवन की लीलाएं और दिव्या जनो के कार्यों को छोड़ कर सभी को अपने कर्मो के फल को भोगना ही पड़ेगा | 

इस चालीसा में कुछ मुख्य  उदहारण दिया है जैसे  कि राजा नल , राजा हरिश्चंद्र , पांडव , कौरव इत्यादि जिन्हे उनके ख़राब शनि कल में कष्ट  भोगना पड़ा |

शनि चालीसा का पाठ करने से शनि की बुरी दशा का सामना नहीं करना पड़ता है | किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा शनि शांति पूजा करना चाहिए |  प्रत्येक शनिवार को पीपल के पेड़ को जल चढाने और सरसो का दिया अर्पित करने से भी शनि महाराज की बुरी नजर नहीं लगती है  और व्यक्ति सुख की प्राप्ति करता है |

शनि देव की पूजा में भगवन राम के पिता दसरथ महाराज द्वारा रचित  शनि स्तोत्रम का भी एक विशेष महिमा है | शनि वज्रपंजर कवचम् भी अत्यंत लाभकारी है |

बोलो :  ॐ शं शनैश्चराय नमः

  • हिंदी / संस्कृत
  • English

शनि चालीसा

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥

परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥ ४॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥

पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥ ८॥

पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥ १२॥

रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥

दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥ १६॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥

तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥ २०॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥

कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥ २४॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥

शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥

वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥ २८॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥ ३२॥

तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥

समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥ ३६॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥ ४०॥

॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥

Shani Chalisa (in English)

jay jay shree shanidev prabhu, sunahu vinay mahaaraaj ॥
karahu krpa he ravi tanay, raakhahu jan kee laaj ॥

॥ chaupaee ॥
jayati jayati shanidev dayaala ॥
karat sada bhaktan pratipaala ॥

chaari bhuja, tanu shyaam viraajai ॥
ratn ratn chhabi chhaajai ॥

param vishaal manohar bhaala ॥
tehi drshti bhukuti vikaarala ॥

kundal shravan chamaacham chamake ॥
hiy maal muktan mani damake ॥ 4 ॥

kar mein gada trishool kuthaara ॥
pal bich karain arihin sanhaara ॥

pingal, krshn, chhaaya nandan ॥
yam, konasth, raudr, duhkhabhanjan ॥

soory, mand, shani, dash naam ॥
bhaanu putr poojahin sab kaam ॥

ja par prabhu prasann havan jaahin ॥
rankhahun raav karain kshan maaheen ॥ 8 ॥

parvat hoon trin hoi nihaarat ॥
trnahu ko parvat kari daarat ॥

raaj milat ban raamahin deenhayo ॥
kaikeihoon kee mati hari leenhyo ॥

banahoon mein mrg kapaat dikhaee diya ॥
maatu jaanakee gaee churaee ॥

lakhanahin shakti vikal karidaara ॥
macheega dal mein haahaakaara ॥ 12 ॥

raavan kee gati mati bauraee ॥
raamachandr son bair ॥

diyo keet kari kanchan lanka ॥
baajee bajarang beer kee danka ॥

nrp vikram par tuhi pagu dhaara ॥
chitr madhuri gaay haara ॥

haar naulakha laagyo choree ॥
haath par daravaay toree ॥ 16 ॥

bhaaree dasha nikrsht ॥
telihin ghar kolhoo chalavaayo ॥

vinay raag deepak mahan kinhyo ॥
tab prasann prabhu hvai sukh deenhyo ॥

harishchandr nrp naaree bikaani ॥
aapahun antim dom ghar paanee ॥

taise nal par dasha siraanee ॥
bhoonjameen kood gaya paanee ॥ 20 ॥

shree shankarahin gahyo jab jaee ॥
paarvatee ko satee kare ॥

tanik vilokat hee kari reesa ॥
nabh udi gayo gaureesut seesa ॥

paandav par bhaee dasha vivaah ॥
bach draupadee hoti ughaari ॥

kaurav ke bhee gati mati maarayo ॥
yuddh mahaabhaarat kari daariyo ॥ 24 ॥

ravi kahan mukh mahan dhaaree thanda ॥
lekar koodi parayo paataala ॥

shesh devalakhee vinatee lai ॥
ravi ko mukh te diyo aadarshai ॥

vaahan prabhu ke saat sajaana ॥
jag diggaj gardabh mrg svaana ॥

jambook sinh aadi nakh dhaaree ॥
so phal jyotish kahat kolee ॥ 28 ॥

gaj vaahan lakshmee grh aavai ॥
hay te sukh sampati upajavain ॥

gardabh haani karai bahu kaaja ॥
sinh siddhakar raaj samaaja ॥

jambook buddhi nasht kar daarai ॥
mrg de kasht praan sanhaarai ॥

jab aavahin prabhu svaan savaaree ॥
choree aadi hoy dar bhaaree ॥ 32 ॥

taisaahi chaari charan yah naama ॥
svarn loh chaandee aru tam ॥

loh charan par jab prabhu aavai ॥
dhan jan vinaash nasht karaavai ॥

samata taamr rajat shubhakaaree ॥
svarn sarv sarv sukh mangal bhaaree ॥

jo yah shani charitr nit gaavai ॥
kaahun na dasha nikrsht sataavai ॥ 36 ॥

adbhut naath dikhaavain leela ॥
karan shatru ke naashee bali uddhaar ॥

jo pandit suyogy bulaavai ॥
sarvopari shani grah shaanti karaave ॥

peepal jal shani divas chadhaavat ॥
deep daan dai bahu sukh paavat ॥

kahat raam sundar prabhu daasa ॥
shani sumirat sukh hot prakaasha ॥ 40 ॥

॥ doha ॥
paath shanishchar dev ko, kee hon bhakt taiyaar ॥
karat paath chaalees din, ho bhavasaagar paar ॥

********

Leave a Comment