भोलेनाथ हमारे सबके अति प्रिये देवो के देव महादेव हैं | उनकी उपासना का एक सरल साधन है शिव चालीसा का पाठ करना |
शिव चालीसा में 40 पद हैं| श्री पावर्ती पुत्र गणेश जी को स्मरण करके शुरू होता हैं और महाकाल भोलेनाथ के अनेक दिव्या गुणों और लीलाओ का बखान होता हैं |
शिव चालीसा का त्रयोदशी के दिन हवन कराके पाठ करने से विशेष लाभ होता है | उसका व्रत करने का भी विधान है | ऋण मोचन , पुत्र प्राप्ति, विघ्न हरण , मानसिक शांति इत्यादि की प्राप्ति सुलभ हो जाती है |
शिव चालीसा के रचयिता श्री अयोध्यादास जी को महान संतों में गिना जाता हैं | बड़ी ही सुन्दर पदों में उन्होंने शिव जी का गुणगान किया है |
शीघ्र ही अपने प्यारे भक्तों से प्रसन्न हो कर उनको मनचाहा वरदान देने वाले आशुतोष भोलेनाथ शंकर आप सभी की सारी मुसीबते दूर करें और आप सभी की रक्षा करे |
बोलो पारवती पतये हर हर हर हर …. महादेव
जय शिव संभो |
- हिंदी / संस्कृत
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शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥
॥ doha ॥
jay ganesh girija suvan,
mangal mool sujaan ॥
kahat ayodaas tum,
dehu abhay bhooshana ॥
॥ chaupaee ॥
jay girija pati deen dayaala ॥
sada karat santan pratipaala ॥
bhaal chandrama sohat neeke ॥
kaanan kundal naagaphanee ke ॥
ang gaur shree ganga bahaye ॥
mundamaal tan kshaaraprasthaan ॥
vastr kal baaghambar sohe ॥
chhavi ko dekhi naag man mohe ॥ 4 ॥
maina maatu kee have dulaaree ॥
baam ang sohat chhavi nyaaree ॥
kar trishool sohat chhavi bhaaree ॥
karat sada shatrun kshayakaaree ॥
nandi ganesh sohai tahan kaise ॥
saagar madhy kamal hain aise ॥
kaartik shyaam aur garaaro ॥
ya chhavi ko kahi jaat na kooo ॥ 8 ॥
devan jabahin jaay bulaay ॥
tab hee duhkh prabhu aap nivaara ॥
achhoota taarak bhaaree ॥
devan sab mili tumahin jauharee ॥
turat shaadaanan aap pathaayau ॥
lavanimesh mahan maari girayau ॥
aap jalandhar asur sanhaara ॥
suyash tumhaar vidit sansaara ॥ 12 ॥
tripuraasur san yuddh machaee ॥
sabahin krpa kar leen bachaee ॥
kiya tapahin bhaageerath bhaaree ॥
poorab pratigya taasu puraari ॥
daanin mahan tum sam kooo nahin ॥
sevak stuti karat sadaahin ॥
ved naam mahima tav gaee ॥
akath anaadi bhed nahin paee ॥ 16 ॥
prakatee udadhi math mein naav ॥
jarat surasur bhaye vihaala ॥
keenhee daya tahan karee sahaee ॥
neelakanth tab naam kahai ॥
vandan raamachandr jab keenha ॥
jeet ke lank vibheeshan deenha ॥
sahas kamal mein ho rahe dhaaree ॥
keenh pareeksha tabahin puraari ॥ 20 ॥
ek kamal prabhu raakheu joee ॥
kamal nayan poojan chahan soi ॥
kathin bhakti darshan prabhu shankar ॥
bhe vishesh aalekh var ॥
jay jay jay anant avinaashee ॥
karat krpa sab ke ghatavaasee ॥
dusht sakal nit mohi sataavai ॥
bhramat rahaun mohi chain na aavai ॥ 24 ॥
traahi traahi main naath pukaaro ॥
yehi avasar mohi an ubaaro ॥
trishool shatru ko maaro ॥
sankat se mohi an ubaro ॥
maata-pita bhraata sab hoee ॥
sankat mein prashnat nahin koee ॥
svaamee ek hain aasa vivaah ॥
ain harahu mam sankat bhaaree ॥ 28 ॥
dhan nirdhan ko det sada heen ॥
jo koee jaanche so phal pae ॥
astuti kehi vidhi karan vivaah ॥
kshamahu naath ab viphal hamaaree ॥
shankar ho sankat ke naashan ॥
mangal kaaran vighn vinaashan ॥
yogee yati muni dhyaanan ॥
sharad naarad chamak navaanvai ॥ 32 ॥
namo namo jay namah shivaay ॥
sur brahmaadik paar na paay ॥
jo yah paath kare man laee ॥
ta par hot hai shambhu sahaay ॥
rniyaan jo koee ho adhikaaree ॥
paath so kare param paavan ॥
putr heen kar ichchha joee ॥
nishchay shiv prasaad tehi hoi ॥ 36 ॥
pandit trayodashee ko laave ॥
dhyaan den hom karaave ॥
trayodashee vrat karai sada ॥
taake tan nahin rahai kalesha ॥
dhoop deep naivedy chadaave ॥
shankar sammukh paath sunaave ॥
janm janm ke paap naasaave ॥
antim dhaam shivapur mein paave ॥ 40 ॥
kahate hain ayodhyaadaas ka vivaah ॥
jaani sakal duhkh harahu hamaaree ॥
॥ doha ॥
nitt nem kar subah hee,
paath karaun chaaleesa ॥
tum mere man,
poorn karo jagadeesh ॥
magasar chhathi hemant rtu,
sanvat chausath jaan ॥
astuti chaaleesa shivahi,
poorn keen kalyaan ॥
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Jai shankar ji