भगवान श्री कृष्ण की भक्ति को बढ़ने वाली यह श्लोक “श्री कृष्णाष्टकम् ” बहुत प्रसिद्ध है | आपने यह लाइन तो सुना ही होगा “कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ” , यह इसी में आता है |
भगवान श्री कृष्ण को मुख्यतः नारायण रूप में भजन करती यह स्लोकावली बहुत ही मधुर है | इसमें वृन्दावन की गोपी लीला का भी उल्लेख है | हलाकि चतुर्भुज रूप किस्में शंख, चक्र , गदा , कमल फूल , रुक्मणि माता , वासुदेव पुत्र यह सभी मुख्यतः द्वारिका लीला में आता है |
जो भी इस श्लोक को सुबह उठने के बाद पाठ करता है, भगवान श्री कृष्ण के स्मरण मात्रा से उसके सभी पाप मिट जातें हैं |
एक और “श्री कृष्णाष्टकम् –भजे व्रजैक” भी है, जिसे आप यहाँ देख सकतें है |
जय श्री कृष्ण |हरे कृष्ण |
- हिंदी / संस्कृत
- English
श्री कृष्णाष्टकम् – वसुदेव सुतं – कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
अतसी पुष्प संकाशं हार नूपुर शोभितम् ।
रत्न कंकण केयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
कुटिलालक संयुक्तं पूर्णचंद्र निभाननम् ।
विलसत् कुंडलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरम् ॥
मंदार गंध संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम् ।
बर्हि पिंछाव चूडांगं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षं नील जीमूत सन्निभम् ।
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
रुक्मिणी केलि संयुक्तं पीतांबर सुशोभितम् ।
अवाप्त तुलसी गंधं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
गोपिकानां कुचद्वंद कुंकुमांकित वक्षसम् ।
श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
श्रीवत्सांकं महोरस्कं वनमाला विराजितम् ।
शंखचक्र धरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
कृष्णाष्टक मिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
कोटिजन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
॥ इति श्री कृष्णाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
Shri Krishnashtakam (Krishnam vande jagatgurum) in English
Vasudeva sutam devam kansa caṇūra mardanam |
Devakī paramānaṃdam kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Atasī puṣpa saṃkāśam hāra nūpura śōbhitam |
Ratna kaṅkaṇa kēyūram kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Kuṭilālaka saṃyuktaṃ pūrṇacandra nibhānanam |
Vilasat kuṇḍaladharaṃ kṛṣṇam vandē jagadguram ||
Mandāra gandha saṃyuktaṃ cāruhāsaṃ caturbhujam |
Barhi piṃchāva cūḍāṅgaṃ kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Utpulla padmapatrākṣaṃ nīla jīmūta sannibham |
Yādavānāṃ śirōratnaṃ kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Rukmiṇī kēli saṃyuktaṃ pītāmbara suśōbhitam |
Avāpta tulasī gandhaṃ kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Gōpikānāṃ kucadvanda kuṅkumāṃkita vakṣasam |
Śrīnikētaṃ mahēṣvāsaṃ kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Śrīvatsāṅkaṃ mahōraskaṃ vanamālā virājitam |
Śaṃkhacakradharaṃ dēvaṃ kṛṣṇam vandē jagadgurum ||
Kṛṣṇāṣṭaka midaṃ puṇyaṃ prātarutthāya yaḥ pathēt |
Kōtijanma kṛtaṃ pāpaṃ smaraṇēna vinaśyati ||
॥ Iti śrī kṛṣṇāṣṭakam sampūrṇam ॥