श्री दुर्गा सप्त श्लोकी – Sri Durga Sapta Shloki

दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही शक्तिशाली एवम भक्तों के सभी कष्ट दूर करनेवाला माना जाता है | परन्तु यह आम जनता को पढ़ना अत्यंत कठिन है | कारण है संस्कृत का अल्प ज्ञान | उच्चारण भी शुद्ध होना चाहिए |

अतः उसका सार दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ किया जा सकता है | इसमें केवल 7 श्लोक हैं , आसान है , जल्दी से हो जायेगा और सीखना भी आसान है |

हमारे वैदिक धर्म के मंत्र और श्लोक अक्सर  भोलेनाथ शिव जी और माता पार्वती के बिच हुई बातचित होती है | इसमें भी शिव जी पार्वती जी से कहते हैं की देवी आप अपने भक्तों की बहुत जल्द ही कृपा कर देती हो| अतः कलयुग में लोक कल्याण किस प्रकार हो, बताइये | तब यह सप्त श्लोकों की उत्पत्ति होती है| 

माँ भगवती दुर्गा जी के भक्तों को कोई भी भौतिक परशानी नहीं रहती है | उनके सारे दुःख , भय एवं परेशानी माता  दूर कर देती हैं |

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शिव उवाच ।
देवी त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनि ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच ।
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यंबास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्रमंत्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ 1 ॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजंतोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःख भयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता ॥ 2 ॥

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ 3 ॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ 4 ॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ 5 ॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा-
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयांति ॥ 6 ॥

सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥ 7 ॥

इति श्री दुर्गा सप्तश्लोकी ।

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