विष्णु चालीसा क्या है? यह हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की स्तुति का एक प्रसिद्ध पाठ है। इसका अर्थ है “भगवान विष्णु की स्तुति का गान”। इसका पाठ विष्णु मंदिरों में विशेषतः शुक्रवार और गुरुवार के दिन किया जाता है।
विष्णुजी के कई अवतार हैं, जिनमें उनके दस प्रमुख अवतार हैं, जैसे की मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, और कल्कि। विष्णुजी का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”। यह मंत्र उनकी भक्ति में शक्ति प्रदान करता है। विष्णुजी की स्तुति और उनके गुणगान के लिए “विष्णु सहस्त्रनाम” भी बहुत प्रसिद्ध हैं। विष्णु चालीसा के पाठ से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा, सुख, और सफलता की प्राप्ति होती है।
इसका पाठ करते समय शुद्ध और सात्विक भाव से किया जाना चाहिए।
- हिंदी / संस्कृत
- English
विष्णु चालीसा
॥ दोहा॥
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ।
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी ।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी ।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत ।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥
तन पर पीतांबर अति सोहत ।
बैजन्ती माला मन मोहत ॥4॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे ।
देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे ।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन ।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन ।
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥8॥
पाप काट भव सिंधु उतारण ।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण ।
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा ।
तब तुम रूप राम का धारा ॥
भार उतार असुर दल मारा ।
रावण आदिक को संहारा ॥12॥
आप वराह रूप बनाया ।
हरण्याक्ष को मार गिराया ॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया ।
चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया ।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥
देवन को अमृत पान कराया ।
असुरन को छवि से बहलाया ॥16॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया ।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया ॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया ।
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया ।
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया ॥
मोहित बनकर खलहि नचाया ।
उसही कर से भस्म कराया ॥20॥
असुर जलंधर अति बलदाई ।
शंकर से उन कीन्ह लडाई ॥
हार पार शिव सकल बनाई ।
कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी ।
बतलाई सब विपत कहानी ॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी ।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥24॥
देखत तीन दनुज शैतानी ।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी ।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे ।
हिरणाकुश आदिक खल मारे ॥
गणिका और अजामिल तारे ।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥28॥
हरहु सकल संताप हमारे ।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे ।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चहत आपका सेवक दर्शन ।
करहु दया अपनी मधुसूदन ॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन ।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥32॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण ।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥
करहुं आपका किस विधि पूजन ।
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण ।
कौन भांति मैं करहु समर्पण ॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई ।
हर्षित रहत परम गति पाई ॥36॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई ।
निज जन जान लेव अपनाई ॥
पाप दोष संताप नशाओ ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ ।
निज चरनन का दास बनाओ ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै ।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥40॥
Vishnu Chalisa (in English)
॥ doha ॥
vishnu sunie vinaayak sevak kee chitaale ॥
keerat kuchh varnan vivaran deejay gyaan bataayen ॥
॥ chaupaee ॥
namo vishnu bhagavaan kharaari ॥
kasht nashaavan akhil bihaaree ॥
prabal jagat mein shakti vivaah ॥
tribhuvan phal rahee ujiyaaree ॥
sundar roop manohar soorat ॥
saral mohan svabhaavee moorat ॥
tan par peetaambar ati sohat ॥
basantee mangal man mohat ॥4 ॥
shankh chakr kar gada biraaje ॥
dekhat daity asur dal bhaaje ॥
saty dharm mad lobh na gaje ॥
kaam krodh mad lobh na chhaaje ॥
santabhakt sajjan manoranjan ॥
danuj asur dushtan dal ganjan ॥
sukh upajaay abhilaash sab bhanjan ॥
doshaay karat jan sajjan ॥8 ॥
paap kat bhav sindhu udgam ॥
abhilaasha nakar bhakt ubaran ॥
karat anek roop prabhu dhaaran ॥
keval aap bhakti ke kaaran ॥
dharani dhenu banahi tumahin pukaara ॥
tab tum roop raam kee dhaara ॥
bhaar utpaat asur maara dal ॥
raavan aadik ko sanhaara ॥12 ॥
aap varaah roop banaaye ॥
haranyaaksh ko maar plaant ॥
dhar matsy tan sindhu nirmit ॥
terah ratnan ko nikalaaya ॥
amilakh asuran dvand akriy ॥
roop mohanee aap dikhaaya ॥
devan ko amrt paan ॥
asuran ko chhavi se bahalaaya ॥16 ॥
koorm roop dhar sindhu manjhaaya ॥
mandraachal giri turat uthaay ॥
shankar ka tum phandalistaya ॥
bhasmaasur ko roop mein dikhaaya gaya ॥
vedan ko jab asur doobaaya ॥
prabandhan unhen dhoondhavaaya ॥
mohit banee khalahi naachaya ॥
vahee kar se sabzee ॥20 ॥
asur jalandhar ati baladaee ॥
shankar se un keenh ladai ॥
haar paar shiv sakal nirmit ॥
keen satee se chhal khal jaee ॥
sumiran keen saagar shivaraanee ॥
batalaee sab vipat kahaanee ॥
tab tum bane munishvar gyaanee ॥
vrnda kee sab surati bhorani ॥24 ॥
dekhat teen danuj shaitaanee ॥
vrnda aay nakshatr lapataanee ॥
ho sparsh dharm haani maan ॥
hana asur ur shiv shaitaanee ॥
vho dhruv prahlaad ubaare ॥
heeraakush aadik khal maare ॥
ganika aur ajaamil taare ॥
bahut bhakt bhav sindhu utpanne ॥28 ॥
harahu sakal santaap hamaara ॥
krpa karahu hari sirajan haare ॥
dekhahun main nij darashaphe ॥
deen bandhu bhaktan hitakaare ॥
chaahat aapaka sevak darshan ॥
karahu daya aapan madhusoodan ॥
jaanu nahin uchit jap poojan ॥
hoy yagy stuti moranee ॥32 ॥
sheeghraya santosh samaadhaan ॥
vidit nahin vratabodh vismrti ॥
karahun aapaka kis vidhi poojan ॥
kumati vilok hot duhkh bheeshan ॥
karahun pranaam kaun vidhi sumiran ॥
kaun ladakee main karahu daan ॥
sur muni karat sada sevakaee ॥
harshit rahat param gati paee ॥36 ॥
deen duhkhin par sada sahaee ॥
nij jan jan lev apanai ॥
paap dosh santaap nashao ॥
bhav-bandhan se mukt karao ॥
sukh sampatti de sukh upajao ॥
nij charanan ka daas banao ॥
nigam sada ye vinay sunaavai ॥
padhai sunai so jan sukh paavai ॥40 ॥
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