गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa)

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गणेश जी कि आरती बहुत ही प्यारी और प्रसिद्ध हैं | हिमालय की पुत्री माता पार्वती के प्यारे लाल श्री गणेश जी बुद्धि के निधान हैं | अपने भक्तो के सभी विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले हैं |

इस आरती में गणेश जी के जन्म से लेकर उनके प्रमुख गुणों का बखान किया गाया है | गणेश जी की पूजा सभी कर्म कन्डो में सर्व प्रथम किए जाने का आशीर्वाद का भी उल्लेख है | उनपर उनके पिता शिव जी और जगदीश भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा है |

मंगल मूर्ती गणेश जी की जय |

  • हिंदी / संस्कृत
  • English

गणेश चालीसा

॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥

Ganesh Chalisa (in English)

॥ doha ॥
jay ganapati sadagun svaamee,
kavivar aasheervaad ॥
vighn haran mangal karana,
jay jay girijaalaal ॥

॥ chaupaee ॥
jay jay jay ganapati ganaraajoo ॥
mangal arpan karan shubhah kaajoo ॥

jay gajabadan sadan sukhadaata ॥
vishv vinaayaka buddhi vidhaata ॥

svar tund shuchi shund suhaavana ॥
tilak tripund bhaal man bhaavan ॥

raajat mani muktan ur mangal ॥
svarnamukut shree nayan vishaala ॥

pustak paanee kuthaar trishoolan ॥
modak bhog sugandhit phoolan ॥

sundar peetaambar tan saajit ॥
charan paaduka muni man raajit ॥

dhani shiv suvan shadaanan bhraata ॥
gauree laalan vishvavikhyaata ॥

rddhi-siddhi tav chanvar sudhaare ॥
mushaak vaahan sohat dvaare ॥

kahau janm shubh katha vivaah ॥
ati shuchi pavan mangalakaaree ॥

ek samay giriraaj kumaaree ॥
putr vikaas tap keenha bhaaree ॥ 10 ॥

bhayo yagy jab poorn anupama ॥
tab pahunchyo tum dhari dvij roopa ॥

mehamaan jaanee ke gauree sukhaaree ॥
bahuvidhi seva kari vivaah ॥

ati prasannachitt tum var deenha ॥
maatu putr hit jo tap keenha ॥

milahi putr tuhi, buddhi vishaala ॥
bina garbh dhaaran yah kaala ॥

gananaayak gun gyaan nidhaana ॥
poojit pratham roop bhagavaana ॥

as kahi antardhaan roop havai ॥
paalana par aayurvigyaan sandarbh haavai ॥

banee instityoot rudan jabahin tum thaana ॥
lakhi mukh sukh nahin gauree samaana ॥

sakal magan, sukhamangal gaavahin ॥
nabh te suran, suman varshavaahahin ॥

shambhu uma bahudaan lutaavahin ॥
sur munijan, sut dekhan avahin ॥

lakhee ati aanand mangal saaja ॥
dekhiye bhee aaye shani raaja ॥ 20 ॥

nij avagun gunee shani man maaheen ॥
baalak, dekhan chaahat nahin ॥

girija kachhu man bhed bhayayo ॥
utsav mor, na shani tuhee bhayo ॥

kahat lage shani, man sukhaee ॥
ka karihau, shishu mohi prakat ॥

nahin vishvaas, uma ur bhayau ॥
shani son baalak dekhan kahayau ॥

padatahin shani dig kon prakaasha ॥
baalak sir udi gayo aakaasha ॥

girija giree vikal havai dharanee ॥
so duhkh dasha gayo nahin varanee ॥

haahaakaar machayau kailaas ॥
shani keenhon lakkhee sut ko naasha ॥

turat garud chadhaee vishnu siddhayo ॥
kati chakr so gaj sir laaye ॥

bachche ke dhad oopar dharayo ॥
praan mantr vidya shankar darayo ॥

naam ganesh shambhu tab keenhe ॥
pratham poojy buddhi nidhi, var deenhe ॥ 30 ॥

buddhi pareekshan jab shiv keenha ॥
prthvee kar pradakshina leenha ॥

chale shadaanan, bharami bhayaee ॥
rache baithe tum buddhi upaee ॥

charan maatu-pitu ke dhar leenhen ॥
tinake saat pradakshin kinhen ॥

dhani ganesh kahi shiv haye harshe ॥
nabh te suran suman bahu barase ॥

tumhaaree mahima buddhi badaee ॥
shesh sahasamukh sake na gaee ॥

main matiheen maleen dukhaaree ॥
karahoon kaun vidhi vinee vivaah ॥

bhajat raamasundar prabhudaasa ॥
jag prayaag, kaakara, durvaasa ॥

ab prabhu daya deena par keejai ॥
apanee shakti bhakti kuchh deejai ॥ 38 ॥

॥ doha ॥
shree ganesh yah chaaleesa,
paath karai kar dhyaan ॥
nit nav mangal grh basai,
lahe jagat sanmaan ॥

sambandhit apane sahastr dash,
rshi panchamee din ॥
poorn chaaleesa bhayo,
mangal moorti ganesh ॥

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