वाराही कवचम् – Varahi Kavacham

जीवन में जब वह स्थिति आ जाती है जब और कुछ उपाय नहीं काम कर रहा है , तब आप  गुरुजनो के परामर्श से माँ वाराही की साधना  एवं कवच का जप कर सकते हैं |

माँ का यह उग्र रूप है | जो काम  देवी-देवताओं के सौम्य रूप में नहीं हो पता है, तो भक्त उनके उग्र रूप का आह्वान करते हैं |

श्री विद्या के अंतर्गत तंत्र साधना में माँ वाराही की साधना की जाती है | अपने भक्तों पर विशेष कृपा करने वाली माँ वाराही का यह कवच अति प्रसिद्ध है |

इसके ऋषि त्रिलोचन हैं, अनुस्टुप छंद में इसको रचा गया है | शत्रुओं का नाश करने के लिए इसका अनुष्ठान किया जा सकता है |

अपनी एवम अनपे प्रिय जनों के प्राणो की रक्षा के लिए किया जाने वाला यह साधना आपको शुभ फल दें | माँ वाराही आप पर कृपा करें |

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अस्य श्रीवाराहीकवचस्य त्रिलोचन ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, श्रीवाराही देवता, ॐ बीजं, ग्लौं शक्तिः, स्वाहेति कीलकं, मम सर्वशत्रुनाशनार्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यानम् ।
ध्यात्वेंद्रनीलवर्णाभां चंद्रसूर्याग्निलोचनाम् ।
विधिविष्णुहरेंद्रादि मातृभैरवसेविताम् ॥ 1 ॥

ज्वलन्मणिगणप्रोक्तमकुटामाविलंबिताम् ।
अस्त्रशस्त्राणि सर्वाणि तत्तत्कार्योचितानि च ॥ 2 ॥

एतैः समस्तैर्विविधं बिभ्रतीं मुसलं हलम् ।
पात्वा हिंस्रान् हि कवचं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥ 3 ॥

पठेत्त्रिसंध्यं रक्षार्थं घोरशत्रुनिवृत्तिदम् ।
वार्ताली मे शिरः पातु घोराही फालमुत्तमम् ॥ 4 ॥

नेत्रे वराहवदना पातु कर्णौ तथांजनी ।
घ्राणं मे रुंधिनी पातु मुखं मे पातु जंभिनी ॥ 5 ॥

पातु मे मोहिनी जिह्वां स्तंभिनी कंठमादरात् ।
स्कंधौ मे पंचमी पातु भुजौ महिषवाहना ॥ 6 ॥

सिंहारूढा करौ पातु कुचौ कृष्णमृगांचिता ।
नाभिं च शंखिनी पातु पृष्ठदेशे तु चक्रिणि ॥ 7 ॥

खड्गं पातु च कट्यां मे मेढ्रं पातु च खेदिनी ।
गुदं मे क्रोधिनी पातु जघनं स्तंभिनी तथा ॥ 8 ॥

चंडोच्चंडश्चोरुयुग्मं जानुनी शत्रुमर्दिनी ।
जंघाद्वयं भद्रकाली महाकाली च गुल्फयोः ॥ 9 ॥

पादाद्यंगुलिपर्यंतं पातु चोन्मत्तभैरवी ।
सर्वांगं मे सदा पातु कालसंकर्षणी तथा ॥ 10 ॥

युक्तायुक्तस्थितं नित्यं सर्वपापात्प्रमुच्यते ।
सर्वे समर्थ्य संयुक्तं भक्तरक्षणतत्परम् ॥ 11 ॥

समस्तदेवता सर्वं सव्यं विष्णोः पुरार्धने ।
सर्वशत्रुविनाशाय शूलिना निर्मितं पुरा ॥ 12 ॥

सर्वभक्तजनाश्रित्य सर्वविद्वेषसंहतिः ।
वाराही कवचं नित्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ॥ 13 ॥

तथा विधं भूतगणा न स्पृशंति कदाचन ।
आपदः शत्रुचोरादि ग्रहदोषाश्च संभवाः ॥ 14 ॥

माता पुत्रं यथा वत्सं धेनुः पक्ष्मेव लोचनम् ।
तथांगमेव वाराही रक्षा रक्षाति सर्वदा ॥ 15 ॥

इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे श्री वाराही कवचम् ॥

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