राहु कवचम् – Rahu Kavacham

राहु ग्रह का डर अक्सर ज्योतिष शास्त्र में विश्वास करने वालों के दिलों में कभी न कभी होता ही है| हर ग्रह हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी दस्तक देता ही है | अब देखना यह पड़ता है की यह शुभ लक्षण लेके आया है कि अशुभ |  

कृपया ख्याल रखे के अपने मन माने ढंग से किसी भी कवच , मंत्र याह श्लोकों का पाठ न करें | किसी  योग्य ज्योतिषी या गुरु के परामर्श एवं निरिक्षण में ही करें |

यह राहु कवच महाभारत में आता है | द्रोण पर्व में राजा धृतराष्ट्र एवम संजय के वार्तालाप के दौरान  इसे कहा गया है |

लाभ: 
जो भी इस राहु कवच का पाठ करता है उसको  इन चीजों की प्राप्ति होती है :-

अतुलित यश , नाम -सम्मान
सम्पति , धन दौलत
स्वस्थ्य शरीर , रोगों से छुटकारा
विजय – जीवन में जित की प्राप्ति 

राहु ग्रह को शांत करने एवम अनुकूल बनाने के लिए अन्य उपायों में  राहु अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्, राहु मन्त्र  इत्यादि भी आते हैं |

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ध्यानम्
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिनम् ।
सैंहिकेयं करालास्यं लोकानामभयप्रदम् ॥ 1॥

। अथ राहु कवचम् ।

नीलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवंदितः ।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरिरवान् ॥ 2॥

नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम ।
जिह्वां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रिकः ॥ 3॥

भुजंगेशो भुजौ पातु नीलमाल्यांबरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ॥ 4॥

कटिं मे विकटः पातु ऊरू मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥ 5॥

गुल्फौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाण्यंगानि मे पातु नीलचंदनभूषणः ॥ 6॥

फलश्रुतिः
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो
भक्त्या पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धि-
मायुरारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥ 7॥

॥ इति श्री महाभारते धृतराष्ट्र संजय संवादे द्रोण पर्वणि राहु कवचं संपूर्णम् ॥

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